प्रत्यावर्ती धारा (AC) जनित्र की बनावट, सिद्धांत तथा क्रियाविधि। Pratyavarti Dhara (AC) Janitra ki Banawat, Siddhant Tatha Kriyavidhi
प्रत्यावर्ती धारा (AC) जनित्र की बनावट, सिद्धांत तथा क्रियाविधि :-
हैलो दोस्तों मैं आपका स्वागत करता हूँ, हमारे इस ब्लॉग में, इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम मैं आपको प्रत्यावर्ती धारा (AC) जनित्र क्या हैं। तथा प्रत्यावर्ती धारा (AC) जनित्र के सिद्धांत, बनावट तथा क्रियाविधि के बारे में पूरी जानकारी दूंगा।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र क्या है ?
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र एक ऐसा विद्युतीय यंत्र है जो यांत्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्ती विद्युतीय ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है इसे अल्टरनेटर के नाम से भी जाना जाता है।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का सिद्धांत।
यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है इस सिद्धांत की खोज सर्वप्रथम फैराडे ने 1831 ईसवी में की थी। इस सिद्धांत के अनुसार जब किसी चालक के आसपास चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है, तब उस चालक में विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है परिपथ पुरा होने पर इसमें धारा प्रवाहित होने लगाती है।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की संरचना।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की संरचना निम्नलिखित भागों से मिलकर बना रहता है।
जनित्र का बॉडी→ जनित्र का वह भाग जो जनित्र में लगे सभी स्थिर तथा अस्थिर भागों को सहारा देने का काम करता है जनित्र का बॉडी कहलाता है। यह प्रायः कास्ट आयरन स्टील या हाई कार्बन स्टील का बना होता है।
क्षेत्र चुम्बक → किसी भी विद्युत जनित्र के अंदर दो समान शक्तिशाली स्थायी चुंबक एक दूसरे के विपरीत दिशा स्थित रहते है जिसे क्षेत्र चुंबक कहते है।
आर्मेचर → विद्युत जनित्र में नरम लोहे पर तांबे की विद्युत रोधी तार के अनेक फेरों से बना हुआ एक आयताकार ABCD कुंडली होता है जिसे आर्मेचर कहते है इस कुंडली को किसी चुंबकीय क्षेत्र के बीच इस प्रकार रखा जाता है कि इसकी भुजा AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रहे।
वलय → कुंडली के अंतिम सिरे पर दो गोलाकार चालक R1 तथा R2 होते हैं, जिसे वलय कहते है इन वलयो का भीतरी सतह विद्युत रोधी होता है जो धुरी से जुड़ा रहता है कुंडली का एक सिरा R1 से तथा कुंडली का दूसरा सिरा R2 से जुड़ा हुआ रहता है, यह कुंडली के घूमने के साथ -साथ घूमता है।
ब्रुश → वलय R1 तथा R2 के ऊपरी सतह पर दो चालक B1 वन तथा B2 स्पर्श करते हैं यह कुंडली के घूमने पर भी स्थिर रहते है ब्रुश कहलाते है। इन ब्रुश के साथ विद्युतीय यंत्र को जोड़ा जाता है।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की क्रियाविधि।
जब दो वलयों से जुड़ी धुरी को चुंबकीय क्षेत्र के बीच इस प्रकार घुमाया जाता है की कुंडली की भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर हो तब फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम से चुंबकीय क्षेत्र के कारण इन भुजाओं में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित धाराएँ प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार कुंडली में ABCD दिशा में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
यदि कुंडली में फेरो की संख्या अत्यधिक है तो प्रत्येक फेरे में उत्पन्न विद्युत धारा जुड़कर कुंडली में एक शक्तिशाली विद्युत धारा उत्पन्न करती है और यह धारा बाहरी परिपथ में B2 से B1 की ओर प्रवाहित होने लगती है आधे चक्कर के बाद भुजा CD ऊपर की ओर जबकि भुजा AB नीचे की ओर जाने लगती है जिसके कारण फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम से इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और धारा DCBA की ओर प्रवाहित होने लगती है तथा बाहरी परिपथ में विद्युत धारा B1 से B2 की ओर प्रवाहित होने लगती है अतः प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद परिपथ में धारा की दिशा परिवर्तित होती रहती है इसलिए इस प्रकार के धारा को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा कहते हैं, और विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्र कहते हैं।
भौतिकी टॉपिक्स
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धन्यवाद !
यदि कुंडली में फेरो की संख्या अत्यधिक है तो प्रत्येक फेरे में उत्पन्न विद्युत धारा जुड़कर कुंडली में एक शक्तिशाली विद्युत धारा उत्पन्न करती है और यह धारा बाहरी परिपथ में B2 से B1 की ओर प्रवाहित होने लगती है आधे चक्कर के बाद भुजा CD ऊपर की ओर जबकि भुजा AB नीचे की ओर जाने लगती है जिसके कारण फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम से इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और धारा DCBA की ओर प्रवाहित होने लगती है तथा बाहरी परिपथ में विद्युत धारा B1 से B2 की ओर प्रवाहित होने लगती है अतः प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद परिपथ में धारा की दिशा परिवर्तित होती रहती है इसलिए इस प्रकार के धारा को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा कहते हैं, और विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्र कहते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा की विशेषताएं।
1. प्रत्यावर्ती धारा एक निश्चित समय अंतराल के बाद अपनी दिशा परिवर्तित करती रहती है।
2. प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की शक्ति को बिना अधिक उर्जा की हानि के दूर-दूर तक आसानी से भेजा जा सकता है।
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Reviewed by Dilgitshop
on
September 08, 2019
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